Tuesday, January 6, 2009

मेरी आध्यात्मिक यात्रा

मैं अब से पहले अपनी आध्यात्मिक अज्ञानता के कारण "प्रारब्ध" जैसे शब्दों पर विश्वास नहीं करता था......मैं सदैव यही कहता था कि यदि मैंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है तो मुझे ईश्वर अकारण यह दंड क्यों दे रहा है? मैं यह कहता था कि यदि मैंने कुछ भी अनुचित किया है तो मुझे मेरे अनुचित कर्मों का दण्ड, यहीं इसी जन्म में प्राप्त होना या भोगना चाहिए | मैं अपनी बुरी आर्थिक एवं मानसिक स्तिथि के निवारण हेतु विभिन्न ख्याति प्राप्त ज्योतिषियों के पास भी जाता था तो वह मुझे प्रारब्ध का हवाल देते थे जो कि मेरी समझ के बाहर था और मैं उनसे तर्क-वितर्क करता था|

जैसे जैसे समय बीतता गया, मैं ईश्वरीय कृपा से कुछ महान आध्यात्मिक संत महात्माओं के सम्पर्क में आया, उनमें से जो मेरे पहले आध्यात्मिक संत थे "बाबा गरबई नाथ जी" जिन्हें हम सभी "बमतारा" के नाम से भी जानते तथा सम्बोधित करते थे | वे औघड़ मत के बाबा गोरखनाथ परम्परा के महान संत थे | दिगम्बर, शैव रूपी औघड़ संत| वे उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के पास स्थित यमुना नदी के निकट बीहडों में रहते थे| उनकी अलौकिक शक्तियों एवं भक्तों पर कृपा का वर्णन फ़िर कभी और परन्तु यहाँ उनका उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ कि उन्होंने ही सबसे पहले मुझे आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित कराया......अज्ञानता के अन्धकार से बाहर निकाला | आज वे शरीर रूप में नहीं हैं, सन १९९५ में में उन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया |उनके निर्वाण लेने के बाद हम सभी भक्तों को एकबारगी अपने अकस्मात अनाथ होने का बोध होने लगा | परन्तु जैसा बहुत से ग्रंथों में लिखा गया है कि "गुरु एवं सच्चे संत" कभी भी अपने भक्तों को अकेला, नि:सहाय नहीं छोड़ते, वे अलौकिक रूप से अपने भक्तों का ध्यान रखते हैं तथा विभिन्न रूपों एवं स्वरूपों में अपनी उपस्तिथि दर्शाते रहते हैं| आज भी उनकी समाधि इटावा स्थित उसी स्थान पर है जहाँ उनका निवास था, आश्रम था|वहां प्रत्येक गुरु पूर्णिमा के अवसर पर उनके भक्त गण एकत्रित होते हैं |

मेरी आध्यात्मिक यात्रा में मेरे आध्यात्मिक संत पुरुषों में द्वितीय संत पुरूष भी अघोर (औघड़) परम्परा से ही हैं| वे १६ वीं सदी के महान औघड़ संत "बाबा कीना राम जी" की परम्परा से हैं| कभी कभी सोचता हूँ कि मेरे उपर उस परम पिता परमेश्वर की कितनी कृपा है कि उसने मुझे औघड़ परम्परा के इन दो महानतम परम्पराओं एवं धाराओं को शाश्वत रूप से प्रवाहित करने में संलग्न महान संतों का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर दिया है| वर्तमान संत पुरूष जिनका उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूँ, वो महान "संत कीना राम बाबा जी" की परम्परा के आधुनिक संत "पूज्य अघोरेश्वर अवधूत बाबा भगवान् राम जी" का सानिध्य एवं शिष्यत्व प्राप्त कर चुके हैं| उन्होंने मेरी आध्यात्मिक प्रगति में बहुत ही बड़ा योगदान दिया है..... उन्होंने सीधे-सादे सरल शब्दों में मानव जीवन की महत्ता का वर्णन एवं इसके परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें मार्ग दिखाया और लगातार उस पथ पर चलते रहने की शिक्षा दी| मेरे जीवन में "समाज, मानव जीवन, राष्ट्र एवं मानवता" के प्रति मेरे दृष्टिकोण में एक अभूतपूर्व परिवर्तन,इन्हीं के सानिध्य से हुआ है|

वे आध्यात्मिक एवं आध्यात्म की व्यवहारिक शिक्षा तथा आम जीवन में उसकी उपयोगिता का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रत्येक दिन, हर पल अपने विभिन्न कार्य कलापों, जिसमें "मानव सेवा" प्रमुख है, के द्वारा आम जन मानस के समक्ष पस्तुत करते रहते हैं| हमारे ये परम श्रद्धेय संत पुरुष जो कि ३५ वर्षीय युवा हैं, जिन्होंने अपने सभी सहयोगियों,भक्तों,परमार्थियों को, स्वयं को "गुरु" जैसी उपाधि से न संबोधित करने का निर्देश दिया है क्योंकि उनके अनुसार वे अभी इस उपाधि हेतु उनके गुरुजनों से निर्देशित व अधिकृत नहीं किए गए हैं इसलिए हम सभी गुरु का संबोधन न कर के उनको "भैया जी" जैसे स्नेहमय शब्द से सम्बोधित करते हैं| मेरे आध्यात्मिक ज्ञान को श्रद्धेय भैया जी ने एक नया आयाम दिया| आम जीवन में आध्यात्मिक ज्ञानं का व्यवहारिक उपयोग का जो पाठ उन्होंने हम सबको पढाया, वह किसी भी ग्रन्थ एवं शास्त्र के अध्ययन से अधिक उपयोगी एवं ज्ञान पूर्ण है| उनसे जब कभी भी सत्संग करने का सुअवसर प्राप्त हुआ, मुझे तथा हर उस जिज्ञासु को एक अतुलनीय ज्ञान सम्पदा ही प्राप्त हुई है.....इस लिए अभी भी हर समय उनसे कुछ न कुछ अलौकिक ज्ञान तथा जीवन के गहनतम रहस्यों को जानने की इच्छा बनी ही रहती है, जो कि उनसे कितना भी ज्ञान प्राप्त हो जाए, अतृप्त ही रहती है......थोड़ा ज्ञान "और" जीवन के बारे में थोड़ा रहस्योदघाटन "और", यह इच्छा सदैव ही बनी रहती है

मेरी आध्यामिक यात्रा में श्रद्धेय भइया जी के गुरु "पूज्य अघोरेश्वर अवधूत बाबा भगवान राम जी" के वचनों, उनके जीवन वृत्त, उनके द्वारा सीधी-साधी भाषा में मानव जीवन के महत्व के बारे में दिए गए अनमोल वचनों का भी बहुत ही बड़ा प्रभाव पड़ा है| औघड़, जिनके बारे में आम जनमानस में एक अलग ही छवि बनी थी, को समाज में स्वीकार्य बनने, उन औघड़ साधुओं की अलौकिक शक्तियों को समाज कल्याण में प्रयोग करने हेतु "पूज्य अघोरेश्वर अवधूत बाबा भगवान राम जी" ने एक अभूतपूर्व एवं क्रांतिकारी परिवर्तन किया | उन्होंने ने समाज कल्याण हेतु "सर्वेश्वरी समूह", की स्थापना की, जो कि देश के विभिन्न भागों में समाज कल्याण का कार्य नि:स्वार्थ भाव से अपने विभिन्न आश्रमों के माध्यम से कर रहा है| समूह द्वारा संचालित "कुष्ठ सेवा आश्रम" तो "गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड" में सर्वाधिक कुष्ठ रोगियों के इलाज़ के लिए अपना नाम दर्ज करवा चुका है.

अब मैं उन तीन महान आध्यात्मिक शक्तियों का वर्णन अवश्य करूंगा जिन्होंने धर्म, आध्यात्म एवं वेदान्त के सही स्वरूप से मुझे परिचित करवाया | उनके द्वारा कहे गए वचनों एवं जीवन वृत्त पर आधारित उपलब्ध विभिन्न पुस्तकों एवं ज्ञान मय कोशों का अध्ययन कर के मुझमे मानव जीवन एवं उसके कर्तव्यों के प्रति एक विशेष ज्ञान, दृष्टि प्राप्त हुई .......ये तीन महान शक्तियाँ हैं , "स्वामी राम कृष्ण परम हंस, माँ शारदा एवं स्वामी विवेकानंद जी"|

आधुनिक युग के कालजयी महान संत "शिर्डी वाले सांई बाबा" का उल्लेख किए बगैर मैं इस लेख को अधूरा ही समझूंगा | शिर्डी सांई बाबा ने मेरे जीवन में एक विशेष प्रकार की श्रद्धा एवं सबूरी का संचार किया| उन्होंने अपनी विभिन्न लीलाओं एवं सदुपदेशों द्वारा मानव जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं को सुलझाने का सरल संदेश दिया | यह एक अटूट सत्य है कि आज भी जो कोई भी उन्हें ह्रदय से पुकारता है, सांई उसकी रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में आ ही जाते हैं| बाबा की और मुझे निर्देशित करने का श्रेय भी श्रद्धेय भैया जी को ही जाता है| किसी के जीवन में इससे बड़ी और क्या कृपा हो सकती है जब एक महान संत पुरूष, स्वयं अपने किसी एक भक्त को एक और कालजयी एवं महान संत की ओर जाने के लिए निर्देशित करे |

अंत में मैं यह अवश्य बताना चाहूँगा कि बचपन से ही मुझे यदि किसी ने सबसे पहले सर्वाधिक प्रभावित किया है, वह हैं महान संत "कबीर" | जिनकी कही गई बातें आज भी इस अति आधुनिक समय में भी शत प्रतिशत लागू होती हैं |

अपनी इस आध्यात्मिक यात्रा में मुझे जो कुछ भी अनुभव प्राप्त हुए हैं, उन सभी अनुभवों, ज्ञान एवं अंतर्दृष्टि को अपने सभी जाने- अनजाने बन्धुओं को बांटना मेरा कर्तव्य है......और मैं ईश्वरीय प्रेरणा से इस ब्लॉग के माध्यम से सीधी-सरल भाषा में जिसमें हर एक आम व् ख़ास व्यक्ति के पास यह अनमोल ज्ञान पहुँच सके तथा वह इन्हें अपने जीवन में उतार सके................अन्धकार से जीवन के सत्य प्रकाश में आ सके..........

इन महान संतों के सानिध्य, अध्ययन, चिंतन एवं मनन से मुझे जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ है तथा मुझे व्यक्तिगत रूप से जो भी अनुभूतियाँ हुईं हैं, उनका क्रमवार वर्णन, इनकी ही प्रेरणा से मेरे अगले लेखों में आपको समर्पित होगा, इस अपेक्षा में कि यदि किसी भी एक व्यक्ति को इंस कुछ भी प्रेरणा मिलेगी तो मैं अपने को धन्य समझूंगा......

मधुकर पांडेय
मुंबई

Thursday, January 1, 2009

श्री गुरुवे नम:


आज 2009, नव वर्ष के अवसर पर गुरुजनों की प्रेरणा एवं कृपा से अपनी आध्यात्मिक यात्रा के पथ पर एक पग और बढ़ाने का प्रयास कर रहा हूँ.


"वेदान्त भारत" ब्लॉग में राजनैतिक टिप्पणियों से बहुत दूर, मानव जीवन के परम उद्देश्य की प्राप्ति हेतु जो भी ज्ञान प्राप्त होगा,........ दिशा निर्देशन प्राप्त होगा, उसी के अनुरूप अपने तथा अनेकों ऐसे जिज्ञासुओं के आध्यात्मिक अनुभवों का विवरण यहाँ बांटा जायेगा।



इस चिटठा (ब्लॉग) का आरम्भ सर्व प्रथम उन परम श्रद्धेय गुरुजनों की प्रार्थना से कर रहा हूँ जिनके ध्यान, मनन एवं चिंतन से ही उस अभीष्ट की प्राप्ति सम्भव हो पाएगी जो हमारे इस दुर्लभ मानव जीवन का परम उद्देश्य है.


उस प्राणमयी "माँ सर्वेश्वरी" को ध्यान करते हुए आज आप सभी को "श्री गुरु पादुका पंचकम" जैसी अद्भुत, गहन शक्तिमय एवं परमामृतमय भेंट समर्पित है, इसका नित्य भक्ति एवं पूर्ण समर्पण भाव से पाठ करने से नि:संदेह सदगुरु कृपा प्राप्त होती है जिससे हम अज्ञानियों को इस मानव जीवन को देखने की एक नवीन दृष्टि एवं ज्ञान की प्राप्ति होती है।


ॐ तत्सत



श्री गुरु पादुका पंचकम


ॐ नमो गुरुभ्यो गुरु पादुकाभ्यो


नम: परेभ्य: परपादुकाभ्य:


आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यो


नमो नम: श्री गुरुपादुभ्य:


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एँकार ह्रींकार रहस्ययुक्त


श्रींकार गूढार्थ महाविभूत्या


ॐकार मर्म प्रतिपादिभ्याँ


नमो नम: श्री गुरु पादुकाभ्याम
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होमाग्नि होत्राग्नि हविष्य होतृ


होमादि सर्वाकृति भास्मानम


यद्ब्रह्म तत्व बोध वितारिणीभ्याम


नमो नम: श्री गुरु पादुकाभ्याम


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कामादि सर्प व्रज गारुडाभ्याम


विवेकवैराग्य निधि प्रदाभ्याम


बोध प्रदाभ्याँ द्रुत मोक्ष्यदाभ्याम


नमो नम: श्री गुरु पादुकाभ्याम
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अनंत संसार समुद्रतार नौकायिताभ्याम


स्थिर भक्तिदाभ्याम


जाड्यायाब्धि संशोषण वाडवाभ्याम


नमो नम: श्री गुरु पादुकाभ्याम



ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: